"किराये का घर, हर महीने का डर – अब लिया अपना आशियाना"

हर महीने की पहली तारीख डर लेकर आती थी – किराया देने की टेंशन और घर बदलने की चिंता हमेशा बनी रहती थी।

मकान मालिक की शर्तें और दखल – मेहमान नहीं बुला सकते, दीवारों पर कील नहीं ठोक सकते, और हर साल किराया बढ़ जाता था।

बच्चों की पढ़ाई पर असर – हर 1-2 साल में घर बदलने से स्कूल, दोस्त और माहौल बदल जाता था।

बैंक से Loan की जानकारी ली – पता चला 90% लोन मिल सकता है, EMI भी उतनी ही होगी जितना किराया देते हैं।

मोहान गार्डन में 2BHK देखा – बजट में, मेट्रो के पास और सभी सुविधाओं के साथ एक बेहतर जीवन की शुरुआत मिली। –

1. पहली बार अपने घर की चाबी हाथ में आई तो आँखें भर आईं – अब किराया नहीं, सिर्फ चैन है। यह घर नहीं, सपनों की मंज़िल है।–